शनि प्रदोष व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं।

साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई।
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार ।
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार ॥
हे नीलकंठ सुर नमस्कार ।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार ॥
हे उमाकांत सुधि नमस्कार ।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार ॥
ईशान ईश प्रभु नमस्कार ।
विश्‍वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार ॥

दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और खुशियों से उनका जीवन भर गया।

शनि प्रदोष व्रत कथा

शनि प्रदोष व्रत की कथा हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। इस कथा के माध्यम से यह बताया गया है कि किस प्रकार से शनि प्रदोष व्रत करने से भक्तों को संतति सुख प्राप्त हो सकता है। इस कथा में एक नगर सेठ और सेठानी के जीवन की कहानी को बताया गया है, जो संतानहीनता के कारण दुःखी थे। आइए इस कथा को विस्तार से समझते हैं।

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नगर सेठ और सेठानी की समस्या

प्राचीन काल में एक नगर में एक सेठ रहते थे। उनके पास हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं, लेकिन उनकी संतान नहीं थी, जिसके कारण सेठ और उनकी पत्नी सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। इस दुःख से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने एक बड़ा निर्णय लिया। सेठजी ने अपने सारे व्यापार का कार्यभार नौकरों को सौंप दिया और अपनी पत्नी के साथ तीर्थयात्रा पर निकलने का फैसला किया।

साधु से मिलना

तीर्थयात्रा के दौरान, नगर से बाहर जाते समय सेठ और सेठानी को एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न थे। सेठजी ने सोचा कि तीर्थयात्रा से पहले साधु का आशीर्वाद लेना उचित होगा। इसलिए वे साधु के पास बैठ गए और उनके ध्यान समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगे। जब साधु ने अपनी आँखें खोलीं, तो उन्होंने सेठ और सेठानी की मनोदशा को समझ लिया और उनसे कहा कि वे उनके दुःख को जानते हैं।

शनि प्रदोष व्रत का सुझाव

साधु ने सेठ और सेठानी को शनि प्रदोष व्रत करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि इस व्रत को करने से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होगी। साथ ही साधु ने उन्हें शनि प्रदोष व्रत की विधि भी समझाई और भगवान शिव की वंदना बताई, जिसे व्रत के दौरान करना आवश्यक है।

शिव वंदना

हे रुद्रदेव शिव नमस्कार ।
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार ॥
हे नीलकंठ सुर नमस्कार ।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार ॥
हे उमाकांत सुधि नमस्कार ।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार ॥
ईशान ईश प्रभु नमस्कार ।
विश्‍वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार ॥

तीर्थयात्रा और व्रत का परिणाम

साधु से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, सेठ और सेठानी ने अपनी तीर्थयात्रा जारी रखी। यात्रा के बाद जब वे अपने नगर लौटे, तो उन्होंने शनि प्रदोष व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और उनका जीवन खुशियों से भर गया।

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कथा का महत्व

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि शनि प्रदोष व्रत का पालन करने से जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिल सकती है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत शनि और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन है, और इसे विधिपूर्वक करने से जीवन में सुख, शांति और संतान सुख की प्राप्ति हो सकती है।

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