आरती कीजै नरसिंह कुंवर की ।
वेद विमल यश गाउँ मेरे प्रभुजी ॥

पहली आरती प्रह्लाद उबारे ।
हिरणाकुश नख उदर विदारे ॥

दुसरी आरती वामन सेवा ।
बल के द्वारे पधारे हरि देवा ॥

तीसरी आरती ब्रह्म पधारे ।
सहसबाहु के भुजा उखारे ॥

चौथी आरती असुर संहारे ।
भक्त विभीषण लंक पधारे ॥

पाँचवीं आरती कंस पछारे ।
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले ॥

तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा ।
हरषि-निरखि गावे दास कबीरा ॥

आरती कीजै नरसिंह कुंवर की: अर्थ और व्याख्या

यह आरती भगवान नरसिंह के गुणगान और उनके भक्तों की रक्षा करने वाले कार्यों का वर्णन करती है। आरती में भगवान के विभिन्न अवतारों और उनकी महिमा का उल्लेख है। आइए हम इस आरती के श्लोकों का विस्तार से अर्थ समझते हैं।

वेद विमल यश गाउँ मेरे प्रभुजी

इस पंक्ति का अर्थ है कि मैं अपने प्रभु के शुद्ध और पवित्र यश का गायन करता हूँ, जो वेदों द्वारा वर्णित हैं। यहाँ प्रभु के दिव्य गुणों और उनकी महानता की महिमा की जाती है।

पहली आरती: प्रह्लाद उबारे

प्रह्लाद उबारे – इस पंक्ति का अर्थ है कि भगवान नरसिंह ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।
हिरणाकुश नख उदर विदारे – भगवान ने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु के पेट को चीर दिया, जो प्रह्लाद का अत्याचारी पिता था। इस घटना में भगवान ने अपने भक्त के प्रति अपार प्रेम और सुरक्षा का प्रमाण दिया।

दुसरी आरती: वामन सेवा

वामन सेवा – यह भगवान विष्णु के वामन अवतार की आरती है, जहाँ उन्होंने बलि राजा से तीन पग भूमि माँगी थी।
बल के द्वारे पधारे हरि देवा – भगवान वामन बलि के द्वार पर आए और अपनी भक्ति और बुद्धि से बलि का अभिमान तोड़ा।

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तीसरी आरती: ब्रह्म पधारे

ब्रह्म पधारे – यह आरती भगवान विष्णु के परशुराम अवतार की महिमा का वर्णन करती है।
सहसबाहु के भुजा उखारे – भगवान परशुराम ने सहस्रबाहु (हजार हाथों वाले) राजा का संहार किया, जो अत्याचारी था और धर्म का विनाश कर रहा था।

चौथी आरती: असुर संहारे

असुर संहारे – यह भगवान राम की लीला का वर्णन करती है, जिन्होंने लंका के असुर राजा रावण का वध किया था।
भक्त विभीषण लंक पधारे – भगवान राम ने अपने भक्त विभीषण को लंका का राजा बनाया और अधर्म पर धर्म की विजय स्थापित की।

पाँचवीं आरती: कंस पछारे

कंस पछारे – इस पंक्ति में भगवान कृष्ण द्वारा कंस के वध का उल्लेख है।
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले – भगवान कृष्ण ने अपने ग्वाल सखाओं और गोपियों की रक्षा की और उन्हें अपने दिव्य प्रेम से प्रसन्न किया।

तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा

यहाँ तुलसी के पत्तों और मणि-हीरे का प्रतीकात्मक उल्लेख है, जो भक्ति और प्रेम का प्रतीक है। भगवान को तुलसी अर्पण करना भक्तों की भक्ति की निशानी है।

हरषि-निरखि गावे दास कबीरा

इस पंक्ति में भक्त कबीर की भक्ति और उनके हर्षित होकर भगवान की आरती गाने का वर्णन है। यह भक्ति के गहरे प्रेम को दर्शाता है, जो किसी भी बाहरी आडंबर से मुक्त है।


यह आरती भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की महिमा को प्रकट करती है, जहाँ उन्होंने भक्तों की रक्षा की और अधर्म का नाश किया।

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