जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी का अर्थ

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी एक भजन है जो भगवान शनि को समर्पित है। इस भजन के माध्यम से भगवान शनि की स्तुति की गई है, जो हिंदू धर्म में न्याय और कर्म के देवता माने जाते हैं। आइए इस भजन के हर श्लोक का अर्थ विस्तार से समझते हैं।

पहला श्लोक:

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी । सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥

इस श्लोक में भक्त भगवान शनि की जय-जयकार कर रहे हैं, उन्हें “भक्तों का हितकारी” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। शनि देव को सूर्य देव का पुत्र और छाया (शनि देव की माता) का पुत्र बताया गया है। यहाँ भगवान शनि के पारिवारिक संबंधों का उल्लेख किया गया है और उनकी महिमा का गुणगान किया जा रहा है।

दूसरा श्लोक:

श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी । नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥

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इस श्लोक में शनि देव के स्वरूप का वर्णन किया गया है। उन्हें “श्याम अंक” अर्थात् गहरे रंग का बताया गया है। उनकी दृष्टि वक्र (तिरछी) मानी जाती है जो न्याय और कर्म का फल प्रदान करती है। शनि देव को चतुर्भुजा धारी, अर्थात् चार भुजाओं वाले बताया गया है। उनके वस्त्र नीले हैं और वे गज (हाथी) की सवारी करते हैं। यह शनि देव के दिव्य और अद्भुत स्वरूप को दर्शाता है।

तीसरा श्लोक:

क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी । मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥

इस श्लोक में बताया गया है कि शनि देव के सिर पर क्रीट (राजमुकुट) है जो बहुत ही चमकदार है। उनके गले में मोतियों की माला शोभायमान है। यह शनि देव के रूप की दिव्यता और उनकी अलंकरण की भव्यता को प्रकट करता है।

चौथा श्लोक:

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी । लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥

इस श्लोक में शनि देव को अर्पित की जाने वाली भेंटों का वर्णन है। उन्हें मोदक (मिठाई), मिष्ठान (स्वीट्स), पान और सुपारी चढ़ाई जाती है। इसके अलावा, उन्हें लोहा, तिल, तेल, और उड़द का दान भी बहुत प्रिय है। इस प्रकार की भेंटें शनि देव की प्रसन्नता के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

पाँचवा श्लोक:

देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी । विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥

इस श्लोक में बताया गया है कि देवता, दानव, ऋषि, मुनि, और सभी नर-नारी (पुरुष और महिलाएँ) शनि देव का ध्यान करते हैं और उनकी शरण में आते हैं। यहाँ तक कि भगवान विश्वनाथ (शिव) भी उनका ध्यान करते हैं, जो शनि देव की महिमा और शक्ति को दर्शाता है।

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सारांश

इस भजन के माध्यम से भगवान शनि की महिमा, स्वरूप, और उनके भक्तों के प्रति उनकी करुणा को बताया गया है। शनि देव का ध्यान और स्तुति करने से वे भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं और उनके जीवन में आने वाली कठिनाइयों का निवारण करते हैं।

आरती: श्री शनिदेव – जय जय श्री शनिदेव (Shri Shani Dev Ji) PDF Download